स्वावलंबन


“ख़ुदी को कर बुलंद इतना कि हर तक़दीर से पहले
ख़ुदा बंदे से ख़ुद पूछे बता तेरी रज़ा क्या है”
एक कहावत है “ईश्वर भी उन्ही की सहायता करता है, जो स्वयं की सहायता करता है |” वास्तव में यह कथन सत्य है |
स्वावलंबन अथवा आत्मनिर्भरता  दोनों का वास्तविक अर्थ एक ही है- अपने सहारे रहना अर्थात अपने आप पर निर्भर रहना | ये दोनों शब्द स्वयं परिश्रम करके अपने पैरों पर खड़े रहने की शिक्षा और प्रेरणा देने वाले शब्द हैं | यह हमारी विजय का प्रथम सोपान है | इस पर चढ़कर हम गंतव्य-पथ पर पहुँच पाते हैं | इसके द्वारा ही हम सृष्टि के कण-कण को वश में कर लेते हैं | गांधी जी ने कहा है कि वही व्यक्ति सबसे अधिक दुखी है जो दूसरों पर निर्भर रहता है | मनुस्मृति में भी कहा गया है – जो व्यक्ति बैठा है उसका भाग्य भी बैठा है और जो व्यक्ति सोता है उसका भाग्य भी सोता जाता है | परंतु जो व्यक्ति अपना कार्य स्वयं करता है, केवल उसी का भाग्य उसके अपने हाथों में होता है | अत: समाज में अपना स्थान बनाने का एक ही माध्यम है – स्वावलंबन |
स्वावलंबी या आत्मनिर्भर व्यक्ति ही सही अर्थों में जान पाता है कि संसार में  कष्टों का सामना करके आगे कैसे बढ़ा जा सकता है | परावलंबी व्यक्ति को तो व्यक्तित्वहीन बनकर जीवन गुजारना पड़ता है |
एक स्वतंत्र और स्वावलंबी व्यक्ति ही मुक्तभाव से सोच-विचार कर के उचित कदम उठा सकता है | स्वावलंबन हमारी जीवन-नौका की पतवार है | यह ही हमारा पथ प्रदर्शक है | इसी कारण से मानव जीवन में इसकी अत्यंत महत्ता है |
विश्व के इतिहास में अनेकों ऐसे उदाहरण भरे पड़े है जिन्होंने स्वावलंबन से ही जीवन की ऊँचाइयों को छूआ था | अब्राहम लिंकन स्वावलंबन से ही अमेरिका के राष्ट्रपति बने थे | मैक्डानल एक श्रमिक से इंग्लैंड के प्रधानमंत्री बने थे | भारतीय इतिहास में भी शंकराचार्य, ईश्वरचंद्र विद्यासागर, राष्ट्रपिता महात्मा गांधी, एकलव्य, लाल बहादुर शास्त्री आदि महापुरुषों के स्वावलंबन-शक्ति के उदाहरणों से हम अनजान नहीं हैं |
अनुचित लाड-प्यार, मायामोह, आलस्य, भाग्यवाद, अन्धविश्वास आदि स्वावलंबन में बाधाएँ उत्पन्न करती है | इसके अतिरिक्त छात्रों को हतोत्साहित करना या उन पर अंकुश लगाना भी उनके विकास में बाधा उत्पन्न करते हैं | वास्तव में  ये सभी स्वावलंबन के शत्रु हैं | अत: इनसे दूर रहना ही हितकर है | स्वावलंबन की महिमा अपरंपार है | परिश्रमी को सदा ही सुखद फल की प्राप्ति हुई है |
 हम गोयंकन परिवार अपनी सर्वमाननीया प्रधानाचार्या डॉ. रेणू सहगल के मार्ग दर्शन में इसी अवधारणा को विकसित करने हेतु अग्रसर है तथा  विभिन्न क्रियाकलापों के माध्यम से छात्रों को स्वावलंबी बनाने के लिए प्रयासरत हैं |  अपने परिश्रम और स्वयं पर विश्वास और निष्ठा रखते हुए हम गोयंकन परिवार अपने विद्यालय के प्रत्येक विद्यार्थी को इस पथ पर सफल बनाते हुए उनके उज्ज्वल भविष्य के साथ उन्हें स्वावलंबी अवश्य बनाएँगे |
-   पंकज शर्मा

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